Ramayan Book In Hindi: रामायण की इन 108 विचारों को हर एक को जानना चाहिए ।

रामायण सिर्फ हिन्दुओ के लिए ही नहीं बल्कि समस्त मानव जाती के लिए है, जैसे आप कोई मोबाईल लेते है तो उसमे एक निर्देशक बुक रहता है उसी प्रकार हम मनुष्यों के लिए रामायण एक निर्देशक बुक है, 

ये हमे सिखाती यही उंच नीच की भावन से बचे, प्रभु श्री राम ने यह बताए भी और सिखाए की संसार में कोई छोटा या बड़ा नहीं होता । और बुराई पर हमेशा अछाई की जीत होती है, त्याग का भावना रखें प्रभु श्री राम ने राजमहल त्याग कर वनवास धारण कीये, यह देख लक्ष्मण ने भी उनके साथ सभी सुख त्याग दिए,

 रामायण में 7 कांड और 500 सर्ग और 2400 श्लोक है । और रामायण को महर्षि वाल्मीकि जी ने लिखे थे ।  रामायण में अध्याय को  कांड के नाम से जाना जाता है। और रामचरितमानस को गोस्वामी तुलसीदास ने लिखें । 'ramayan book in hindi'


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  1. बाल काण्ड  (जिसमे राम जी बचपन )
  2. अयोध्या काण्ड  ( जिसमे राम जी का राज्याभिषेक )
  3. अरण्य काण्ड (  जिसमे पंचवटी में निवश और शूर्पनखा, रावण की बहन से भेट )
  4. किष्किन्धा काण्ड   ( जिसमे राम जी शुगरी से मित्रता हुई । )
  5. सुंदर काण्ड  ( जिसमे  हनुमान द्वारा सीता माता को सांत्वना मिली । )
  6. युद्ध काण्ड  ( जिसमे रावण पर राम भगवान की विजय हुई । )
  7. उतर काण्ड  ( रावण वध राम जी आयोध्या वापसी , सीता माता वनवास , बाल्मीकि आश्रम में लव- कुश का जन्म )

   Ramayan book in hindi' : रामायण की इन 108 विचारों को हर एक को जानना चाहिए ।

1) जैसे मूर्खों के सामने  विनय दिखना और कुटिल के संग प्रीति करना व्यर्थ होता है, जिस प्रकार मोह ममता मे फसे हुवे, को ज्ञान का उपदेश देना आयुस और धरती में बीज बोना विफल होता है।      

2) संसार में तीन प्रकार के प्राणी होते है, एक केवल कहते है दूसरे कहते है और करते भी है तीसरे केवल करते है उसे बखानते नहीं । 

3) माता पिता हमारे जीवन का प्रथम भगवान है, इस लिए माता पिता के प्रत्येक आज्ञा का पालन करना चाहिए ।  

4) क्रोध हमारे शत्रु है और  क्रोध हमारे सब कुछ नस्ट कर सकता है । 

5) किसी भी व्यक्ति का ज्ञान उसकी आचरण से होता है । 

6) वीर और बलवान पुरुष क्रोधित नहीं होते है । 

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7 ) संसार में बहुत सी अनहोनी बाते एसी होती है, जो मनुष्य को समझ में नहीं आती अकस्मात एक दिन कोई भूकंप आता है जो मनुष्य के जीवन को उथल पुथल कर देता है।  एसी  समय किसी दूसरे  को दोष नहीं देना चाहिए । उसे दैव वस मनकर अपना प्रारब्ध मान कर स्वीकार कर लेना चाहिए । 

8) आज जो हो रहा है, वो होनी कर रहा है ये विधना है , जिसने माता कैकयी जैसी स्नेहमयी और पुण्यशीला स्त्री को एसी बुद्धि देदी है । 

9) कभी - कभी आँखों से देखा हुआ भी सत्य नहीं होता राजपथ का परमारद साधारण मानव को हो सकता है इन्द्र जैसे देवता को भी हो सकता है , परंतु भरत का स्थान देवताओ से भी ऊंचा है,वो एक महामानव के रूप में   महानता  की परीसीमा है । 

10) जिस प्रकार खटाई के एक बंद से क्षीर सागर का दूध नहीं फट सकता उसी प्रकार अयोध्या  तो क्या त्रिलोक का राज्य भी भरत को दे दिया जाए, तो भी उसे  राजमध नहीं हो सकता । 

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11) माता मैं तो केवल इतना ही जनता हूँ  की भगवान के निकट जाती पाती ज्ञान धर्म कुल गुण और चतुराई का कोई मोल नहीं होता, 

वे तो केवल भक्ति के नाते  को ही सच्चे नाते  मानते है । 

12) मइया .. अपने पुत्र से अपने ममता का मोल मांगने आई है । माता यदि आपकि ममता का यही मोल है, की मैं जिसे धर्म मानता हूँ , उसका त्याग कर दूँ आप जिस रघूकूल की शोभा है , उसकी कृति में पिता का वचन भंग करके कलंक लगा दूँ  तो कहिए। मुझे आपके चरणों की सौगंध है, मैं इसी समय अयोध्या लॉट जाऊंगा , 

परंतु मेरा जीवन रण से भागे किसी कायर के भांति एक तिरस्कार पूर्ण अस्तित्व एक श्राप बनकर रह जाएगा । 

13 ) पिता और पुत्र का नाता प्रजा के मतामत से निर्धारित नहीं होता, इसी प्रकार भाई और भाई के बीच फेसले  तलवार से नहीं  कीये जाते । 

 14) भरत को मार कर जिस राज्य की तुम कल्पना कर रहे हो तनिक सोचो  की उसका परिणाम क्या हो होगा , 

यदि अपना भाई ही ना रहे, तो राज्य का  सुख भोग में क्या आनंद मिलेगा । 


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15 ) यदि मेरे सुख में तुम तीनों भाइयो का भाग ना हो तो वो सुख मेरे लिए विष के समान है, जो उचित और अनुचित का भलीभाँती विचार किए बिना किसी काम को जल्दी में करते है वो पीछे पछताते है । 

मझे तुम्हारे वीरता पर कोई संदेह नहीं तुम क्रोध मे आकार भरत को जरूर मार दोगे  किन्तु जब तुम्हें पता चलेगा की भरत पर जो संदेह मिथ्या था तब क्या तुम उसे जीवित भी कर सकोगे । 

16 )  जीवन में जो कुछ होता है, उसके पीछे विधि का कोई योजना होती है, मानव अल्पज्ञ है वो भविष्य को नहीं जनता परंतु बिधता उसे जानते है, की जो दु:ख हमको मिला उसके परिणामसरूप संसार और समाज का कितना कल्याण होने वाला था। 

17 )कोई किसी की मृत्यु का करण नहीं होता होता, काल स्वय मृत्यु का करण बना लेता है । 

18  ) कोन सी डाली एसी है जिसपर फूल खीला हो और  वह फूला डाल से नहीं गिरा ना हो कोन सी जीवन ज्योति एसी है जो प्रज्वलित हुई और बुझी नहीं । 

19 ) मैं तुम पृथ्वी पर जन्मा  हर एक जीव  सब एक दिन काल के काल में चले जाएंगे, ये विधि का विधान है , की धरातल पर स्थित चल अचल सब का अंत एक ना एक दिन अवश्य है । 

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20 ) भक्त और ज्ञानी में यही अंतर होता है, भक्त अनपढ़ हो मूर्ख हो परंतु ह्रदय का सच्चा और मन का सरल होता है , 

परंतु ज्ञानी ..  तुम जैसा दुस्ट  भी हो सकता है, जिसके ह्रदय में अधर्म और कपट होता है उसकी अवस्था तुम्हारी जैसी होती है, जिसे स्वर्ण लंका के राज सिंघासन पर बैठ कर भी जीवन का अपूर्णता का काँटा चुभ रहा है ।      

 21 ) संसार में पिता पुत्र या भाई का नाता जैसे मनुष्य के बनाने से नहीं बनता वह पहले से ही निर्धारीत होता है ,

उसी प्रकार जीवन में किसे तुम्हारी पत्नी बनना है, और कब कहा उसे भेंट होनी है, ये भी बिधाता पहले से ही निश्चित कर देते है, इसलिए मनुष्य को चाहिए की जब उसे भेट हो तो अपना सम्पूर्ण विश्वास सम्पूर्ण प्रेम सोप दे, जिससे उसके पश्चात जीवन में किसी दूसरे की ओर ध्यान ही ना जाए । 

22)   परशुराम जी के क्रोध होने पर लक्ष्मण जी बोलते है की एक धनुष टूट गया तो उसमे इतना क्रोध करने की क्या बात है, हमे तो बचपन मे कई धनुई तोड़ डाली उस समय तो किसी ने क्रोध नहीं किया था । 

 परशुराम जी बोलते है की राजा के छोकरे तनिक होस में बात कर विस्व भर में सम्मानित महाशिव धनुष को बच्चों की धनुष के बराबर समझता है, ये वो धनुष है जिससे शंकर ने तिबराई का वध किया था । 

23) लक्ष्मण जी बोलते है ब्राह्मण देवता आपको धनुष और धनुष मे फ़र्क दिखता होगा हम क्षत्रिय है, धनुष बाण  से खेलना हमारा नित्य कर्म है, हमारे लिए तो सब धनुष एक समान है , 

परशुराम जी बोलते है ढिठाई का कोई हद होता है , लगता है तुझे अपने जीवन से मोह नहीं रहा, लक्ष्मण जी बोलते है की मुझे मोह है की नहीं परंतु आपको इस जीर धनुष से बहुत मोह दिखाई देता है , जिसके टूट जाने पर आप बच्चों के तरह बिलबिला रहे है , 

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रधुवर ने इसे हाथ लगाया और ये टूट गया , इसमे उनका कोई दोश नहीं आप क्रोध त्याग दीजिए मुनिवर  बहुत धमका दे लिया, परशुरामजी बोलते है लगता है की तू अपने माता को निपूती बनाना चाहता है ।  मेने तुम्हें बालक समझकर अब तक जीवित छोड़ रखा था ।  

24) फिर लक्ष्मण जी बोलते है की  मैं एक ब्राह्मण समझकर आपके ऊपर हाथ नहीं उठान चाहता, हमारे कुल में ब्राह्मणों का वध नहीं किया जाता, उनकी रक्षा की जाती है । 

25)  परशुरामजी बोलते है, सठअसिसठ निरकुश बालक कदाचित केवल तूने मुझे एक वेद पाठी ब्राहमण समझ रखा है, 

तू नहीं जानता की मैं क्षत्रिए  कुल नाशक बाल ब्रह्मचारी आती क्रोधी वह परशुराम हूँ , जिसने कई बार इस पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन कर दिया, क्षत्रिए  राजाओ का सकल नास करके यह पृथ्वी बार-बार ब्राह्मणों को दान कर दी है , 

  इस फरसे से मैंने सहस्त्र बाहु की भुजा को काटा है, इसी फरसे मैंने बार -बार क्षत्रियों का लहू पिया है और आज तुम्हारे लहू से इस फरसे की प्यास बुझाई जाएगी । 

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26) लक्ष्मण जी बोलत है की आप बार - बार मुझे डरा रहे है, तो एसा लगता है, जैसे एक बालक फुक मारकर पर्वत उड़ाने की चेसटा कर रहा हो, 

ब्राह्मण देवता जो वीर होते है वो अधिक बाते नहीं करते वार करते है, ये कायर पुरुषों की निशानी है की युद्ध करने की बज़्य वो अपनी शान में बड़ी - बड़ी  बाते पखारने लगते है । 

27) परशुराम बोलते है, विस्वामित्र यदि इस उदण्ड बालक की रक्षा चाहते हो तो इसे हमारे आँखों से दूर ले जाओ लक्ष्मण जी बोलते है आप आँखे बंद कर लीजिए प्रभु मैं दिखाई नहीं दूंगा । 

28)    परशुराम बोलते है, विस्वामित्र इसे हमारे क्रोध और पराक्रम की शक्ति बताओ , 

लक्ष्मण जी बोलते है , अपनी गुणगान आप स्वय ही इतने अच्छे सुना लेते है की दूसरे की अवशकता ही नहीं है अभी तक अपने महान गाथा गाते - गाते  दिल नहीं भरा हो तो सुना लीजिए की किस तरह एक कर्तब विरकुमार के दोष पर क्रोध में आकार लाखों निर्दोष क्षत्रियों को संघार कर दिया, 

पिता का ऋण कैसे चुकाया माता का  गला इस फरसे से कैसे काट दिया सुनाइए- सुनाइए अपने महान  कार्यों की पूर्ण कथा ।   


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29) परशुराम जी क्रोध मे बोलते बस बहुत हो गया अब कोई मुझे दोष ना देना ये बालक अब निश्चितय  ही मरण हार है आश्चर्य है की मेरा कुठार के सामने आकार भी अब तक जीवित कैसे रहा ये,

लक्ष्मण जी बोलते है मुझे भी आश्चर्य है की मेरे देव तुल्य भईया के मृत्यु दंड की बात कोई मेरे सामने करे और मेरे बनो से अब तक बचा रहे ।  लक्ष्मण जी क्रोध में आकार तीर चलाने जा रहे थे तब राम जी रोक देते है ।    

30 ) वेदों का कहना है क्रोध भी पुण्य बन सकता है, यदि वह धर्म और मर्यादा की रक्षा के हो ,

और सहनशीलता भी पाप बन सकता है यदि वह और मर्यादा की रक्षा विफल रहे, पितामह भीष्म के जीवन मे एक मात्र गलती थी की उन्होंने समय पर क्रोध नहीं किया, जब द्रोपती का चीरहरण हो रहा था । दूसरी ओर जटायु का जीवन का स्वसए बड़ा पुण्य ये था की उन्होंने सही समय पर क्रोध किया जब माता सीता का हरण हो रहा था । 

समय के साथ दोनों की मृत्यु हुई लेकिन अंतर ये था की भीष्म को बानो को सय्य पर सोना पड़ा और जटायु को प्रभु श्रीराम की गोद में ।    

जय श्री राम 

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Aaj Ki Breaking News

मैं आज की ब्रेकिंग न्यूज का founder हूँ। मेरा काम ताजा न्यूज का अपडेट देना है। और मैं एक Diploma Holder हूँ । मैं Bangalore , NTTF कॉलेज से, मैं न्यूज से काफी प्रेरित हो कर आज से मै भी startup कर दिया हूँ, न्यूज चैनल से, और मैं 2018 से अभी तक मैं इसी क्षेत्र मे काम कर रहा हूँ। लगभग 5 साल का अनुभव है,न्यूज फील्ड मे।

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