आज कि इस लेख में बताने वाले है कि 'first Verse of bhagvat gita: भागवद गीता का पहला सलोक कौन सा - है और क्यों भागवत गीता का 700 सलोक भागवन क्यों सुनाना पड़ा है, भागवत गीता का 10 सलोक का मतलब लिखने वाला हूँ ।
अध्याय 1 : -
पांडव और कौरव दोनों एक ही बड़े परिवार के थे और इसके बावजूद भी हर किसी ने जीतने का इरादा था ।
भगवान श्री कृष्ण के साथ अर्जुन ने अपने सेना को सामने लाकर खड़ा किया ताकि वो देख सके की उसको किन- किन लोगोंको को मारना है ।
इस घड़ी मे भगवान कृष्ण ने अर्जुन के रथ को मैदान के बीच मैं ले आये वहा कुरुक्षेत्र के युध्द मैदान में कौरवों की सेना मे अर्जुन के सामने दादा भीष्म और गुरु द्रोणाचार्य खड़े थे, और गुरु द्रोणाचार्य ने ही अर्जुन को तीर धनुष चलना सिखया था, अर्जुन ने युध्द के मैदान मे जिधर देखा वहा दोनों ही और सिर्फ परिवार वाले और गुरुओ के शिष्य ही नजर या रहे थे ।
इस दीऋश्य को देख कर अर्जुन बहुत ही उदास हो गए और कृष्ण से बोले की यहाँ तो हर कोई मेरा सगा संबंधी है ।
मैं अपने ही गोलो को नहीं मार सकता, मुझे इस राज्य के लिए तो क्या अगर कोई तीनों लोक भी देदे तो भी मैं एसा युद्ध नहीं करूंगा, जिसमे मुझे अपने को ही मारना पड़े ।
इससे हमे ये सीखने को मिलता है की जब हम जीवन मैं आगे बढ़ने के लिए तैयार होते हमे अपने लगाव को खुद से दूर रखना चाहिए ।
मान लीजिए आपका दिल से किसी व्यक्ति से गहरा प्यार है लेकिन वह व्यक्ति आपके वो व्यक्ति प्यार को समझने का मन नहीं रखता इस बदले में आपको उसके प्रेम को प्राप्त करने के लिए मोहित नहीं होना चाहिए, क्योंकि लगाव किसी भी रूप में हानिकारक हो सकता है ।
जब तक ये लगाव है तब तक आप अपने आत्मा के धर्म को पूरा नहीं कर सकते ।
first slok of bhagwat gita:भागवद गीता का पहला सलोक ।
- श्रीकृष्ण अर्जुन से बोले क्या तुम आचनक से डर रहे हो ? तुम्हें डरना नहीं चाहिए क्योंकि ये लोग तुम्हारे मरने से ही मरेंगे और तुम्हें ही उन्हे मारना होगा । इस सब लोगों का पिछले जन्म से और आगे के जन्म के साथ कोई संबंध नहीं है, वे हुमहारे जैसे अनादि है, इसलिए जैसे की तुम अपने पुराने कपडे बदलकर नए पहनते हो वैसे ही आत्मा शरीर को छोड़ देती है । हे अर्जुन तू किसी मरे हुए इंसान को जीवित नहीं कर सकता क्योंकि जीवन और मृत्यु का नियंत्रण सिर्फ मेरे पास है ,तू तो उनकी मौत का सिर्फ कारण है और ये लोग मरने के बाद भी मेरे ही पास आएंगे क्योंकि वे शरीर नहीं है , वो तो आत्मा है और आत्मा को किसी भी तरह से नष्ट नहीं किया जा सकता आत्मा अगले जन्म के लिए इस शरीर को त्याग देती है, जीह प्रकार तू पुराने कपड़े बदलकर ने पहनता है, इसी तरह से जैसे कोई कछुआ खुद को खुद मे ही समेट लेता है वेसे ही मनुष्य अपनी इच्छाओ को वश में कर लेता है । जो व्यक्ति अपने अपने मन की सभी इच्छाओ और कर्मों के परिणामों को सोचना छोड़ देता है वही स्थिर बुध्दि कहलाता है जिसके मन से हर प्रकार का डर भावना और क्रोध खत्म हो जाता है , वही मनुष्य संत रहता है ।